*** Tahir Faraz Shayari ***
Mere ehsaas ko shiddat na mile
Yaa muje hukam-e-kanat na mile...
Jiske milne se khuda ban jau
Ay khuda wo mujko wo daulat na mile..
Mai tera shukar ada karta rahu
Aur muje hasbe jarurat na mile...
Itna masroof na kar tu ke muje
Tujse milne ki bhi fursat na mile...
Unhi shakho par ugata hai muje
Meri jin shakho se fitrat na mile..
Apna daman bhi na chune de muje
Uthna chahu to ijazat na mile...
Jane kya hashar mera hoga " faraz "
Wo agar roz-e-qayamat na mile..
❤❤❤❤
मेरे एहसास को शिद्दत ना मिले
या मूज़े हुकम -ए-कनात ना मिले...
जिसके मिलने से खुदा बन जाऊ
ए खुदा वो मुझको वो दौलत ना मिले..
मै तेरा शुक्र अदा करता रहू
और मुझे हास्बे ज़रूरत ना मिले...
इतना मसरूफ़ ना कर तू के मुझे
तुझसे मिलने की भी फ़ुर्सत ना मिले...
उन्ही शाखो पर उगाता है मुझे
मेरी जिन शाखो से फ़ितरत ना मिले..
अपना दामन भी ना छूने दे मुझे
उठना चाहू तो इजाज़त ना मिले ...
जाने क्या हशर मेरा होगा " फ़राज़ "
वो अगर रोज़-ए-क़यामत ना मिले..
2 comments
Write commentsकुछ अल्फ़ाज़ ग़लत है, मैं ने थी से लिख दिया ज़रा देख कर ठीक कर लीजिए
Replyमेरे एहसास को शिद्दत न मिले
या मुझे हुक्म-ए-क़ना'अत न मिले
जिसके मिलने से ख़ुदा बन जाऊँ
ऐ ख़ुदा मुझको वो दौलत न मिले
मैं तिरा शुक्र-अदा करता रहूँ
और मुझे हस्ब-ए-ज़रूरत न मिले
इतना मसरूफ़ न कर तू कि मुझे
तुझसे मिलने की भी फ़ुरसत न मिले
उन्हीं शाख़ों पे उगाता है मुझे
मेरी जिन शाख़ों से फ़ितरत न मिले
अपना दामन भी न छू ने दे मुझे
उठना चाहूँ तो इजाज़त न मिले
जाने क्या हश्र मिरा होगा 'फ़राज़'
वो अगर रोज़-ए-क़यामत न मिले
कुछ अल्फ़ाज़ ग़लत है। मैं ने ठीक से लिख दिया, ज़रा ग़ौर फरमाइए, और ठीक कर लीजिए ता कि लोग आकर ग़लत न पढ़े।
Replyमेरे एहसास को शिद्दत न मिले
या मुझे हुक्म-ए-क़ना'अत न मिले
जिसके मिलने से ख़ुदा बन जाऊँ
ऐ ख़ुदा मुझको वो दौलत न मिले
मैं तिरा शुक्र-अदा करता रहूँ
और मुझे हस्ब-ए-ज़रूरत न मिले
इतना मसरूफ़ न कर तू कि मुझे
तुझसे मिलने की भी फ़ुरसत न मिले
उन्हीं शाख़ों पे उगाता है मुझे
मेरी जिन शाख़ों से फ़ितरत न मिले
अपना दामन भी न छू ने दे मुझे
उठना चाहूँ तो इजाज़त न मिले
जाने क्या हश्र मिरा होगा 'फ़राज़'
वो अगर रोज़-ए-क़यामत न मिले
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