Agar Na Johra Jabeeno Ke Darmiyaa Gujre-Jigar Moradabadi Shayari
अगर न ज़ोहरा जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िन्दगी कहाँ गुज़रे
जो तेरे आरिज़-ओ-गेसू के दरमियाँ गुज़रे
कभी-कभी तो वो लम्हे बला-ए-जाँ गुज़रे
मुझे ये वहम रहा मुद्दतों के जुर्रत-ए-शौक़
कहीं ना ख़ातिर-ए-मासूम पर गिराँ गुज़रे
हर इक मुक़ाम-ए-मोहब्बत बहुत ही दिल-कश था
मगर हम अहल-ए-मोहब्बत कशाँ-कशाँ गुज़रे
जुनूँ के सख़्त मराहिल भी तेरी याद के साथ
हसीं-हसीं नज़र आये जवाँ-जवाँ गुज़रे
मेरी नज़र से तेरी जुस्तजू के सदक़े में
ये इक जहाँ ही नहीं सैकड़ों जहाँ गुज़रे
हजूम-ए-जल्वा में परवाज़-ए-शौक़ क्या कहना
के जैसे रूह सितारों के दरमियाँ गुज़रे
ख़ता मु’आफ़ ज़माने से बदगुमाँ होकर
तेरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे
ख़ुलूस जिस में हो शामिल वो दौर-ए-इश्क़-ओ-हवस
नारैगाँ कभी गुज़रा न रैगाँ गुज़रे
इसी को कहते हैं जन्नत इसी को दोज़ख़ भी
वो ज़िन्दगी जो हसीनों के दरमियाँ गुज़रे
बहुत हसीन सही सुहबतें गुलों की मगर
वो ज़िन्दगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे
मुझे था शिक्वा-ए-हिज्राँ कि ये हुआ महसूस
मेरे क़रीब से होकर वो नागहाँ गुज़रे
बहुत हसीन मनाज़िर भी हुस्न-ए-फ़ितरत के
न जाने आज तबीयत पे क्यों गिराँ गुज़रे
मेरा तो फ़र्ज़ चमन बंदी-ए-जहाँ है फ़क़त
मेरी बला से बहार आये या ख़िज़ाँ गुज़रे
कहाँ का हुस्न कि ख़ुद इश्क़ को ख़बर न हुई
राह-ए-तलब में कुछ ऐसे भी इम्तहाँ गुज़रे
भरी बहार में ताराजी-ए-चमन मत पूछ
ख़ुदा करे न फिर आँखों से वो समाँ गुज़रे
कोई न देख सका जिनको दो दिलों के सिवा
मु’आमलात कुछ ऐसे भी दरमियाँ गुज़रे
कभी-कभी तो इसी एक मुश्त-ए-ख़ाक के गिर्द
तवाफ़ करते हुये हफ़्त आस्माँ गुज़रे
बहुत अज़ीज़ है मुझको उन्हीं की याद “जिगर”
वो हादसात-ए-मोहब्बत जो नागहाँ गुज़रे
-Jigar Moradabadi Shayari
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