Na Jee Bhar Ke Dekha Na Kuch Baat Ki By Chandan Das Ghazal
Na jee bhar ke dekha na kuch baat ki
Badi aarzo thi mulaqaat ki
Kayi saal se kuch khabar he nahi
Kaha din gujra kaha raat ki..
Ujalo ki pariya nahane lagi
Ndi gungunane lagi khayalaat ki..
Na jee bhar ke dekha na kuch baat ki
Badi aarzo thi mulaqaat ki..
Mai chup tha to chalti hawa ruk gayi
Jubaa sab samajte hai jazbaat ki..
Sitaro to shayad khabar he nahi
Musafir ne jane kaha raat ki..
Na jee bhar ke dekha na kuch baat ki
Badi aarzo thi mulaqaat ki
❤❤❤❤
ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
कई साल से कुछ खबर ही नही
कहा दिन गुजरा कहा रात की..
उजलो की पारिया नहाने लगी
नदी गुनगुनाने लगी ख़यालात की..
ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की..
मै चुप था तो चलती हवा रुक गयी
जुबा सब समझते है जज़्बात की..
सितारो तो शायद खबर हे नही
मुसाफिर ने जाने कहा रात की..
ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बड़ी आरज़ो थी मुलाक़ात की
❤❤❤❤
ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
कई साल से कुछ खबर ही नही
कहा दिन गुजरा कहा रात की..
उजलो की पारिया नहाने लगी
नदी गुनगुनाने लगी ख़यालात की..
ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की..
मै चुप था तो चलती हवा रुक गयी
जुबा सब समझते है जज़्बात की..
सितारो तो शायद खबर हे नही
मुसाफिर ने जाने कहा रात की..
ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बड़ी आरज़ो थी मुलाक़ात की
1 comments:
Write commentsIt's Bashir Badr sahab's ghazal..
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