Wafa-e-Wada Nahi Wada-e-Digar Bhi Nahi-Faiz Ahmad Faiz
वफ़ा-ए-वादा नहीं,वादा -ए-दिगर भी नहीं
वो मुझसे रूठे तो थे, लेकिन इस क़दर भी नहीं
बरस रही है हरीमे-हवस मे दौलते-हुस्न
गदा-ए-इ’श्क़ के कासे मे इक नज़र भी नहीं
न जाने किसलिए उम्मीदवार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
निगाहे-शौक़ सरे-बज़्म बे-हिजाब न हो
वो बे-ख़बर ही सही, इतने बे-ख़बर भी नहीं
ये अ’हदे-तर्क़े-मोहब्बत है किसलिये आख़िर
सुकूने-क़ल्ब इधर भी नहीं, उधर भी नहीं
-Faiz Ahmad Faiz
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