Bhuji Hui Shamma Ka Dhua Hu-Jigar Moradabadi Shayari
के दिल की हस्ती तो मिट चुकी है अब अपनी हस्ती मिटा रहा हूँ
मुहब्बत इन्सान की है फ़ित्रत कहा है इन्क़ा ने कर के उल्फ़त
वो और भी याद आ रहा है मैं उस को जितना भुला रहा हूँ
ये वक़्त है मुझ पे बंदगी का जिसे कहो सज्दा कर लूँ वर्ना
अज़ल से ता बे-अफ़्रीनत मैं आप अपना ख़ुदा रहा हूँ
ज़बाँ पे लबैक हर नफ़स में ज़मीं पे सज्दे हैं हर क़दम पर
चला हूँ यूँ बुतकदे को नासेह, के जैसे काबे को जा रहा हूँ
-Jigar Moradabadi Shayari
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